Mera vyaktitva
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Wednesday, January 25, 2006
Mere Sirhane jalao sapne
मेरे सिरहाने जलाओ सपने,
ज़रा सी मुझको तो नींद आए.
ख़्याल चलते हैं आगे आगे,
मैं उनकी छाँव में चल रही हूँ,
ना जाने किस मोम की बनी हूँ,
कि कतरा कतरा पिघल रही हूँ.
मैं सहमी रहती हूँ कि
नींद में भी कोई ख्वाब ना डॅस जाए
कभी बुलाता है कोई साया,
कभी उड़ाती है धूल कोई
मैं एक भटकी हुई सी ख़ुशबू,
तलाश करती हूँ फूल कोई
ज़रा किसी शाख पैर तो बैठू,
ज़रा तो मुझ को हवा झुलाए.
(A song from Maya Memsahab explaining my insomnia and its cure)
Posted by Neelima Arora :: 1:34 AM :: 1 Comments: ---------------------------------------