मैं? मैं कौन हूँ? इस प्रश्न का उत्तर क्या कोई कभी जान पाया है, या जान सकेगा, एह मेरे परिचय से भी बड़ा प्रश्न है. कौन हूँ मैं? शायद अपने ही अस्तित्वा पर लगा एक प्रश्नचिन्ह, या युगों युगों की उदासी में सिमटा एक छोटा पल छिन. एक कतरा हूँ पानी का, आसूं हूँ, हँसी हूँ तुम्हारे लबों की या एक आशा जो अपना चेहरा घुटनों में दबाए प्रतीक्षा कर रही है, या कोई अहिल्या जो राम के इंतजार में पाषण बनी बैठी है ? जान जाओ तो मुझे भी बताना, मेरा नाम, मेरा पता. तब तक अपने आप को ही सवालिया नज़रों से देखती आँख की पुतली सी ढूँढती रहूंगी, शून्य अंतरिक्ष में अपना नाम, अपना पता.
Mera parichay