Mera vyaktitva
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Sunday, October 28, 2007
तुम्हारे लिए
"आकाश से झरते हैं बादल ,
बिखरती है ख़ुशबू ,
तुम्हारे लिए, तुम्हारे लिए"
बरसो पहले सुनी ये पंक्तियाँ आज भी अनायास ही गुनगुनाने लगती हूँ, आज ये यूँ ही बेमानी नहीं हैं, कोई है जो समझता है, किसी का अहसास है , जो इन पंक्तियों को सार्थक कर देता है, बदल देता है पर्याय हर बात के.
Posted by Neelima Arora :: 1:38 AM :: 4 Comments: ---------------------------------------