Mera vyaktitva
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Path ke Pahchane
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Monday, March 03, 2008
माँ
"रूह के रिश्ते की ये गहराइयाँ तो देखिए
चोट लगती है हमें और चिल्लाती है माँ
फ़िक्र में बचों की कुछ इस तरह घुल जाती है माँ
नौज़वान होते हुए बूढ़ी नज़र आती है माँ
सख़्त राहों मे भी आसान सफ़र लगता है...
यह मेरी माँ की दुआओं का असर लगता है
मौत की आगोश में जब थक के सो जाती है माँ
तब कहीं जा कर सुकून थोड़ा सा पा जाती है माँ"
जब मैंने इन पंक्तियों को एकत्र करना आरंभ किया था, उद्देश्य था अपनी माँ के प्रति कुछ उद्गार प्रकट करना , माँ सुनती , मंन ही मन मुस्कराने लगती, उसकी आँखों में जुगनू से चमकने लगते, ढेर सारे सपने मेरे उज्ज्वल भविष्य के तैरने लगते, कुछ बूँद आँसुओं के साथ, और वो बुदबुदा उठती, बस बस बहुत हुआ, पहले ये संघर्ष भरे दिन ख़तम हो जायें, तू कुछ बन जाए, मेरे मरने के बाद याद करना मुझे ये सब कह कर. तब कहाँ जाना था उसकी बातों का सार, सच ही तो वो नहीं रही ये सब देखने को. पर उसे खोने का अहसास जागता ही नहीं, दुख है जो घर कर के बैठ गया मन में पर उसकी गैर मौजूदगी उसके ना होने का प्रमाण नहीं बन पाई अब तक, उसे गुज़रे 3 माह बीत गये पर आज भी दरवाजा खोलती हूँ तो लगता है, अभी माँ पूछेगी , आज का दिन कैसा बीता, हर दम इर्द गिर्द महसूस करती हूँ उसकी परछाई को पर एक ख़ालीपन सा है. शायद इस हफ्ते में अपनी थीसिस पूरी करूँगी, तुम बहुत याद आओगी माँ. तुम्हारा एक सपना पूरा होने जा रहा है, तुम्हारा प्रण , तुम्हारा संघर्ष जीत गया माँ, अब तो खुश हो.
Posted by Neelima Arora :: 6:20 AM :: 2 Comments: ---------------------------------------