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Sankalan
Path ke Pahchane
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Friday, January 28, 2011
एक नया अध्याय आरंभ हुआ है जीवन में. दो मन , दो प्राण एक सूत्र में बँध गये वर्षो की प्रतीक्षा के बाद. अब मैं सिर्फ़ नीलिमा नहीं रह गयी, बहुत से रिश्ते जुड़ गये हैं और मिले हैं बहुत से नये संबोधन. किसी की बहू, किसी की भाभी और किसी की जेठानी. बहुत रिश्ते सहेजने हैं ,जानती ही नहीं थी कि यूँ भी बदल जाएगी जिंदगी. आँखों में इतने सपनो की जगह भी ना थी, जितने सपने सच हो गये हैं. इस सपने को देखने तक से डरती थी पर तुम ने सब सच कर दिखाया.और खुशियाँ जो कब से एक रूठी सहेली की तरह दूर जा बैठी थी, अब लौट आई हैं, और आ के छिप गयी है इन आँखो में जिन में हर दम नमी तैरती थी.
"बेताब दिल की, तमन्ना यही हैं
तुम्हे चाहेंगे, तुम्हे पूज़ेंगे
तुम्हे अपना खुदा बनाएँगे
सूने सुने ख्वाबो में, जब तक तुम ना आए थे
खुशियाँ थी सब औरों की, गम भी सारे पराए थे
अपने से भी छुपाई थी, धड़कन अपने सीने की
हम को जीना पड़ता था, ख्वाहीशकब थी जीने की
अब जो आ के तुम ने, हमें जीना सीखा सीखा दिया हैं
चलो दुनियाँ नयी बसाएँगे
भीगी भीगी पलकों पर, सपने कितने सजाए हैं
दिल में जितना अंधेरा था, उतने उजाले आए हैं
तुम भी हम को जगाना ना ,बाहो में जो सो जाए
जैसे खुशबू फूलों मे, तुम में यूँ ही खो जाए
पल भर किसी जनम मे, कभी छूटे ना साथ अपना
तुम्हे ऐसे गले लगाएँगे
वादे भी है, कसमे भी, बीता वक्त इशारों का
कैसे कैसे अरमान है, मेला जैसे बहारों का
सारा गुलशन दे डाला, कलियाँ और खिलाओ ना
हँसते हँसते रो दे हम,इतना भी तो हँसाओं ना
दिल में तुम ही बसे हो, रहा आँचल वो भर चुका हैं
कहाँ इतनी खुशी छिपाएँगे"
(कैफ़ी आज़मी)
Posted by Neelima Arora :: 1:28 AM :: 0 Comments: ---------------------------------------