Mera vyaktitva
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Sankalan
Path ke Pahchane
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Saturday, July 16, 2011
लहरों के शांत होने का मतलब ये कतई नहीं होता कि वो थक तक गई हैं या हार मान बैठी हैं. लहरें जो सतह पर शांत दिखती हैं ज़रूरी नहीं कि उनमें गति ना हो, भीतर ही भीतर शायद वो हौंसला जुटा रही होती हैं आने वाले पलों का जिन के लिए उन्होने अपनी पूरी शक्ति संचित कर के रखी थी और लोग समझ बैठे जी बस, ख़त्म हो गया जोश, समाप्त हो गये वो कुछ कर गुजरने के जज़्बे.
कभी कभी हम किसी को सुस्ताते देखते हैं तो उसके हिम्मत हारने की वजह ढूँढने लगते हैं , बिना जाने कि वो अपनी उर्जा को व्यय नहीं कर रहा क्योंकि लक्षय कुछ और ही हैं और जब मन में ये भाव हो तो आप कितना भी तिरस्कार की नज़र से देखिए या अपनी जीत और उसकी हार के जश्न मना लीजिए,उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता. पड़े भी क्यों, जब अपने मन में आने वाले समय की साफ तस्वीर हो. कभी भैया ने कहा था कि पूरे दम से शिकार करने के लिए शेर को भी दो कदम पीछे हटना पड़ता है, आज उसी का अनुसरण कर रही हूँ. बस राह ही बदली है, छोड़ी नहीं है.ये राह मैने चुनी हैं , ये जानते बूझते हुए कि विराम बहुत आएँगे और बहुत से प्रलोभन , रुकावटें रास्ता बदलने के ख़याल पैदा करेंगी मन में, पर जानती हूँ कि मैं रूकूंगी नहीं. यदि कोई जलधारा पर्वत शिखर से अपना स्थान छोड़ नीचे की और बहने लगती है तो उसका ये अभिप्राय नहीं होता की अब उन में बल नहीं, वो तो बस अब चाहती हैं कि अब उन का जल , उनका वेग किसी रचनात्मक कार्य में लगे जल को भी नभ तक जा कर बरसने के लिए वाष्प बन कर कुछ समय के लिए निगाह से ओझल होना पड़ता है, पर क्या उनका नज़रों से ओझल होना, उनके अस्तित्व को मिटा देता है, नहीं सिर्फ़ रूप बदलता है कुछ समय के लिए, अगर मकसद पता है, मंज़िल पता है तो राह कोई भी हो, मंज़िल मिलना तो तय है अगर आप में इच्छाशक्ति है तो.
Posted by Neelima Arora :: 7:09 AM :: 0 Comments: ---------------------------------------